जानि-पहचानी सी लगती है
चाँद तारो से आगे है इस दिल की चाहत
आसमानों से परे है इस दिल की हशरत !
हर बीती यादो में दुंदु कुछ पल की बरकत,
और हर आती जाती लम्हों से पुछु जीने का मकसद!!
नीली आश्मानो से उतरी है आँखों में गम की नमी,
या ठंडी हवाओ ने एहशाश दिलाया उसकी कमी?
अबतो हमे ये शाम कुछ ज्यादा गहरी लगती है,
राते भी कुछ ज्यादा काली और कुछ देर तक जगती है !
हमारी दिन और राते धुंद है उसकी ही यादो में
उसकी यादो की गम दिल को निराली सी लगती है,
इतना भर दिया गम उसने इस दिल में अब के
उसके बिना जिंदगी अब कुछ ज्यादा खली सी लगती है !!
अजनबी कर दी उसने मेरी हर लम्हा खुद से
फिर भी हमे ये बाते उसकी नादानी सी लगती है,
ये सच है के हमे वो पहचानने से भी इंकार कर दे
फिर भी दिल को वो जाने क्यों जानि-पहचानी सी लगती है !!